नमस्कार दोस्तों, इस लेख में अपकृत्य विधि के तहत अतिचार (Trespass) क्या है, इसका अर्थ, परिभाषा एंव अतिचार के प्रकार | what is trespass in hindi, Definition, Meaning etc. के बारे में बताया गया है, अतिचार अपकृत्य विधि का एक महत्वपूर्ण विषय है|
अतिचार का क्या है
शब्दकोश के अनुसार अतिचार का अर्थ – सीमा से आगे बढ़ जाना, अतिक्रमण करना, ग्रहों की शीघ्र चाल (जब कोई ग्रह किसी राशि के भोगकाल को समाप्त किए बिना ही दूसरी राशि में चले जाना), अनुचित कार्य करना, मर्यादा का उल्लगंन, अधिक खेल तमशे देखने का दोष, बिना अनुमति के प्रवेश करना आदि शब्दों से लिया जाता है।
ब्लैक लॉ डिक्शनरी के अनुसार – अतिचार किसी अन्य व्यक्ति या उसकी संपत्ति के खिलाफ किया गया एक अवैधानिक कार्य है। भूमि के सम्बन्ध में इसका अर्थ, अनधिकार प्रवेश से तथा माल के सम्बन्ध में इसका अर्थ, ऐसी सम्पत्ति के कब्जे में अनुचित हस्तक्षेप से लिया जाता है।
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अतिचार की परिभाषा
सामान्य शब्दों में – कोई व्यक्ति जो बिना अनुमति के किसी अन्य की गोपनीयता या संपत्ति या माल में हस्तक्षेप करता है, अतिचार कहलाता है।
कानूनी शब्द में अतिचार से तात्पर्य है कि व्यक्ति ने जानबूझकर बिना किसी विधिक औचित्य के किसी की निजी संपत्ति में प्रवेश किया है।
उदाहरण के लिए – यदि आप पहाड़ी से लड़खड़ाकर गिर जाते है और अपने आप को किसी के बगीचे में पाते है, तब आप अतिक्रमणकारी नहीं है लेकिन यदि आप खड़े होकर अपने आपको झाड़ते हुए अपने पड़ोसी के घर में प्रवेश करते है, उस स्थिति में आपका यह कृत्य अनधिकार प्रवेश कहलायेगा।
अचल सम्पत्ति के सम्बन्ध में – किसी अन्य व्यक्ति की भूमि पर किसी विधिपूर्ण न्यायानुमिति के बिना भूमि के अधिपत्य (कब्जा) में हस्तक्षेप अथवा बाधा करना है तथा ऐसा हस्तक्षेप अथवा बाधा किसी मूर्त पद्वार्थ के माध्यम से भी किया जा सकता है।
जगंम सम्पत्ति (माल) के सम्बन्ध में – वादी के कब्जे मे रहने वाली वस्तु या माल के साथ बिना किसी विधिक न्यायनुमत या औचित्य के प्रत्यक्ष भौतिक हस्ताक्षेप करना है। यह अनेक रूपों मे हो सकता है, जैसे – कार से टायर निकालना, वस्तुओं को नुकसान या नष्ट करना, पशुओं को पिटना या मार डालना आदि।
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किसी व्यक्ति पर हमला करना या प्रहार करना या अंग-भंग करना या उसे बिना विधिक औचित्य के मिथ्या कारावास में रखना शरीर के प्रति अतिचार कहलाता है। आसान शब्दों में किसी व्यक्ति के शरीर को उसकी इच्छा के खिलाफ आघात पहुंचाना, बदले की भावना या अभद्र तरीके से छुना आदि कृत्य शरीर के प्रति अतिचार होते है।
अतिचार के प्रकार
अनधिकार प्रवेश को मुख्य रूप से तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है, जो निम्नलिखित है –
(i) स्थावर सम्पति (भूमि) के प्रति अतिचार, (ii) जंगम सम्पति (माल) के प्रति अतिचार, (iii) शरीर के प्रति अतिचार। इनका विस्तृत वर्णन अलग पोस्ट में किया जायेगा।
(i) स्थावर सम्पति (भूमि) के प्रति अतिचार
भूमि अतिचार यानि स्थावर सम्पति के प्रति अतिचार से तात्पर्य बिना किसी विधिपूर्ण औचित्त्य भूमि के कब्ज) में हस्तक्षेप अथवा बाधा कारित करना है तथा ऐसा हस्तक्षेप या बाधा किसी मूर्त पदार्थ के माध्यम से हो सकता है। किसी व्यक्ति के घर या सम्पत्ति में अवैधानिक रूप से प्रवेश करना या उसके कब्जा में बाधा पहुंचाना भूमि अतिचार कहलाता है।
आसान शब्दों में भू-स्वामी की सहमति के बिना उसकी सम्पत्ति में प्रवेश करना या उसे अपने आधिपत्त्य में लेना अनधिकार प्रवेश माना जाता है, यह अचल सम्पति के प्रति किया जाने वाला एक मुख्य अपकृत्य है।
उदाहरण – अ व्यक्ति द्वारा ब व्यक्ति की भूमि पर वृक्षारापूर्ण करना भूमि अतिचार है लेकिन यदि अ व्यक्ति अपनी भूमि पर वृक्ष लगाता है और उसकी जड़े व टहनियां ब व्यक्ति की भूमि मे चली जाती है, तब अ का यह कार्य भूमि अतिचार न होकर केवल मात्र न्यूसेन्स (उपताप) होगा।
भूमि अतिचार के मामलों में वादी को नुकसानी साबित करने की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि यह अतिचार स्वतः अभियोज्य होता है। लेकिन यदि किसी व्यक्ति को किसी अन्य व्यक्ति की भूमि मे प्रवेश करने का विधिपूर्ण अधिकार है या उसके पास प्रवेश करने लाईसेन्स है, वहाँ भूमि अनधिकार प्रवेश नही होता है।
भूमि अतिचार के प्रकार – स्थावर सम्पत्ति पर अतिचार अनेक माध्यमों से किया जा सकता है, जैसे – भूमि में अनधिकार प्रवेश करना, वादी की भूमि पर वस्तु डाल देना, अनुज्ञप्ति (लाइसेंस) का दुरुपयोग करना, आरम्भ से ही अतिचार, निरंतर अतिचार, सम्बन्ध द्वारा अतिचार, वायुमण्डलीय अतिचार, संयुक्त अभिधारी द्वारा प्रवेश कर अतिचार, जानवरों द्वारा अनधिकार प्रवेश आदि।
वाद लाने का अधिकार – भूमि Atichar के खिलाफ उसी व्यक्ति को वाद लाने का अधिकार प्राप्त है जिसके कब्जे के अधिकार का उल्लंघन हुआ है ना की सम्पत्ति के अधिकार का। ऐसा वाद, वादी स्वयं या उसके अभिकर्त्ता द्वारा या किसी स्थान में रहने वाला व्यक्ति, अतिथि या सेवक या गाड़ी में सीट का उपयोग करने वाले व्यक्ति भी ला सकता है।
अतिचार की कार्यवाही में वादी को दो बातें साबित करनी आवश्यक है, जिनमे पहली बात यह है कि क्या अनधिकार प्रवेश के समय सम्पत्ति पर वादी का वास्तविक कब्जा था और दुसरी बात कि प्रतिवादी द्वारा उसकी सम्पत्ति में प्रत्यक्ष हस्तक्षेप किया गया था।
भूमि के प्रति अनधिकार प्रवेश के वाद में वादी को प्रतिवादी के खिलाफ उपचार भी उपलब्ध होते है जिनके द्वारा वादी अपनी भूमि से प्रतिवादी का दखल हटा सकता है, जिनमें पुनः प्रवेश, न्यायालय में निष्कासन/बेदखली की कार्यवाही, मध्यवर्ती लाभ के निमित्त कार्यवाही तथा अनधिकार प्रवेश से होने वाले नुकसान की पूर्ति के लिए वादी अतिचारी के पशुओं या अन्य जंगम वस्तुओ जब तक जब्त कर सकता है तब तक की उसके नुकसान की प्रतिपूर्ति नहीं कर दी जात।
अनधिकार प्रवेश (Atichar) की कार्यवाही में प्रतिवादी को (1) चिरभोग (Prescription), (2) अनुमति (cave) एवं अनुज्ञप्ति (Licence), (3) विधिक प्राधिकार (Authority of Law), (4) आवश्यकता के कृत्य (Acts of necessity) व (5) आत्मरक्षा (Self defence) आदि कुछ बचाव (DEFENCES) के अधिकार प्राप्त होते है, जिनकी सहायता से प्रतिवादी ऐसी कार्यवाही में अपना बचाव कर सकता है।
(ii) जंगम सम्पति (माल) के प्रति अतिचार –
जंगम सम्पति यानि माल Atichar से तात्पर्य है – वादी के कब्जे के माल के साथ बिना किसी विधिक न्यायनुमत या औचित्य के भौतिक हस्ताक्षेप करना है। यह अधिपत्य (कब्जे) के प्रतिकूल (विपरीत) अपकार है।
माल Atichar भी स्वयं अपने आप मे कार्यवाही योग्य है अर्थात इसमें क्षति को साबित किये बिना ही वाद प्रस्तुत किया जा सकता है। लेकिन यदि वादी को कोई नुकसान नहीं हुआ है उस स्थिति में वह केवल नाम मात्र की नुकसानी ही प्राप्त कर सकेगा।
माल अतिचार के विविध रूप हो सकते है, जैसे – किसी की कार पर पत्थर फेंकना, चिड़ियों को गोली से दागना, पशुओ को पीटना या उनमें किसी प्रकार के रोग का संक्रमण कराना या पशुओं को इस प्रकार खदेड़ना ताकि वे अपने स्वामी के आधिपत्य से निकल कर भाग जाए, कार से टायर निकालना, कार को गैरेज से हटाना, वस्तुओं को आघात पहुँचाना या नष्ट करना। यह सभी अवैधानिक कार्य होते है जिनके द्वारा सम्पत्ति को हानि पहुँचायी जाती है।
कुछ मामलों में जानवरों को मारना नुकसानी के वाद का कारण तभी हो सकता है जब विशेष क्षति साबित हो जाये और कुछ ऐसे मामले भी होते है जहाँ किसी वस्तु को मात्र छूने से अतिचार का अपकृत्य हो जाता है, जैसे – गोले पैन्ट, मोम से निर्मित वस्तुएँ, संग्रहालय में रखी हुई वस्तुओं को छूना आदि।
माल Atichar के मामलों में क्षति प्रत्यक्ष होनी चाहिये, यदि क्षति प्रतिवादी की किसी भूल के परिणामस्वरूप हुई हो तो वह अतिचार के लिए दायी नहीं होगा, क्योंकि ऐसी दशा में किया गया कृत्य अनैच्छिक तथा आकस्मिक होता है ना कि जानबूझकर या असावधानी से
कार्यवाही का अधिकार – माल Atichar में ऐसा कोई भी व्यक्ति कार्यवाही करने का अधिकार रखता है, जिसके माल का कब्ज़ा प्रत्यक्षतः व्यवधानित हुआ है। कोई भी व्यक्ति सम्पत्ति पर या तो प्रत्यक्षतः वास्तविक कब्जा रखता है या अन्वयिक कब्ज़ा।
माल का स्वामी माल पर अपने सेवक अथवा अभिकर्ता या माल के वाहक अथवा उपनिहिती के माध्यम से कब्जा रख सकता है। परन्तु जब स्वामी ने अपना कब्जा त्याग दिया है तब वह कार्यवाही करने का अधिकारी नही होगा। अतिचार, अधिपत्य के विपरीत अपकार है, ना कि स्वामित्व के। इस लिए जो कब्जेदार व्यक्ति है, वह कार्यवाही कर सकता है, चाहे भले ही कोई अन्य व्यक्ति माल का स्वामी हो।
आवश्यक तत्व – माल Atichar के अपकृत्य के लिए वादी को अपने प्रकरण में यह साबित करना होता है कि –
वह चल सम्पत्ति पर वास्तविक या आन्वयिक कब्जा रखता था तथा उसके कब्जे के अधिकार में गलत ढंग से प्रतिवादी द्वारा या उसकी और से किसी अन्य व्यक्ति ने हस्तक्षेप किया है|
भूमि अतिचार की तरह माल Atichar मे भी प्रतिवादी को अपने बचाव के लिए अधिकार दिये गये जिनमें, सम्पत्ति की रक्षा, अपने अधिकारों का प्रयोग, कानूनी अधिकार का परिपालन, वादी द्वारा अनुचित कार्य करना, माल की बलात् वापसी, परव्यक्ति का अधिकार आदि शामिल है।
(iii) शरीर के प्रति अतिचार –
शरीर के प्रति अतिचार मुख्य रूप से चार तरह से किया जा सकता है, जिनमें किसी व्यक्ति पर हमला करना, प्रहार करना, अंग-भंग कर देना और मिथ्या कारावास शामिल है। आसान शब्दों में किसी व्यक्ति के शरीर को उसकी इच्छा के खिलाफ आघात पहुंचाना, बदले की भावना या अभद्र तरीके से छुना प्रहार की परिधी में आने से यह कृत्य Atichar कहलाता है।
सर फ्रेडरिक पोलक का मत है कि, सभ्य समाज में व्यक्ति के शरीर की सुरक्षा प्रथम आवश्यकता है, कानून केवल आघात एंव हिंसा से ही मानव को नहीं बचाता है वरन वह शारीरिक हस्तक्षेप, अनुचित रूकावट एंव किसी कारण से उत्पन्न होने वाले भय से भी बचाता है।
डॉ. विनफील्ड ने हमला की परिभाषा देते हुए कहा है कि, प्रतिवादी का ऐसा कार्य जो वादी के मन में ऐसी आंशका पैदा कर दे कि प्रतिवादी उस पर प्रहार करेगा। हमले का मुख्य आवश्यक तत्व वादी के मन में प्रतिवादी द्वारा तत्काल प्रहार की युक्तियुक्त आशंका उत्पन्न करना ही है।
इसके अलावा मिथ्या कारावास द्वारा भी व्यक्ति के शरीर के प्रति अतिचार किया जाता है, इसमें बिना किसी विधिक औचित्य के व्यक्ति को गिरफतार कर देना या बन्द कर देना जिस कारण उसकी स्वतन्त्रता पूर्ण रूप से अवरूध हो जाती है। इस कारण मिथ्या कारावास को व्यक्ति के शरीर के प्रति Atichar माना गया है जो अपराध होने के कारण इसे भारतीय दण्ड संहिता की धारा 340 में परिभाषित किया गया है।
निष्कर्ष
उपरोक्त विवेचन से स्परष्ट है कि, कोई व्यक्ति जो बिना अनुमति के किसी अन्य की गोपनीयता या संपत्ति या माल में हस्तक्षेप करता है, अतिचार कहलाता है। Atichar तीन तरह का होता है जिसमें भूमि अतिचार, माल अतिचार एंव शरीर के प्रति अतिचार शामिल है, इन सब में मुख्य बात व्यक्ति की सहमती एंव विधिक औचित्य है।
ऐसे कार्य जिनका कोई विधिक औचित्य ही नहीं है से यदि किसी अन्य व्यक्ति को नुकसान पहुंचता है उस स्थिति में वे सभी कार्य Atichar की श्रेणी में आने से वाद योग्य होते है और वादी अपने नुकसान की पूर्ति के लिए प्रतिवादी के खिलाफ कार्यवाही कर सकता है।
इसके अलावा वादी द्वारा प्रस्तुत वाद में बचाव के लिए प्रतिवादी को भी अनेक अधिकार प्राप्त है जिनके द्वारा वह प्रकरण में अपना बचाव कर सकता है।
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