विधिशास्त्र क्या है?
विधिशास्त्र विधि का विज्ञान है जिसके अन्तर्गत न्यायालय द्वारा लागू किए जाने वाले क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित नियमों और उनमें सन्निहित सिद्धान्तों का अध्ययन किया जाता है। विधि एवं न्याय प्रशासन में विधिशास्त्र का महत्त्वपूर्ण स्थान है, विधिशास्त्र ही है जो विधि का ज्ञान कराता है।
विधिशास्त्र शब्द अंग्रेजी के Jurisprudence का हिन्दी रूपान्तरण है। यह शब्द लैटिन के दो शब्द ‘ज्यूरिस’ (Juris) एवं ‘प्रूडेंशिया’ (Prudensia) से मिलकर बना है जिनका क्रमशः शाब्दिक अर्थ है- ‘विधि’ एवं ‘ज्ञान’। इस प्रकार विधिशास्त्र का अर्थ हुआ विधि का ज्ञान।
विधिशास्त्र की परिभाषा
विधिशास्त्र की विभिन्न विद्वानों द्वारा अलग – अलग परिभाषायें दी गई हैं, जिनमे से कुछ महत्त्वपूर्ण परिभाषायें यहाँ दी गई हैं –
सॉमण्ड की परिभाषा : विख्यात विधिशास्त्री सॉमण्ड (Salmond) के अनुसार “विधिशास्त्र नागरिक विधि के प्रथम सिद्धान्तों का विज्ञान है।” संक्षेप में इसे ‘विधि का विज्ञान’ (science of law) भी कहा जा सकता हैं। इस परिभाषा के तीन आवश्यक तत्त्व हैं- विधि का विज्ञान, प्रथम सिद्धान्त और नागरिक विधि। इसके अन्तर्गन्त समस्त विधिक सिद्धान्तों का क्रमबद्ध अध्ययन किया जाता है।
सिविल अर्थात् नागरिक विधि से तात्पर्य ऐसी विधि से है जो शासन द्वारा अपने नागरिकों पर लागू की जाती है और जिसे मानने के लिए देश के नागरिक, अधिवक्ता एवं न्यायालय आबद्ध होते हैं। इस प्रकार सॉमण्ड के अनुसार- विधिशास्त्र ऐसी विधियों का विज्ञान है, जिन्हें न्यायालयों द्वारा लागू किया जाता है।
ऑस्टिन की परिभाषा : जॉन ऑस्टिन (John Austin) ने विधिशास्त्र की एक उपयुक्त परिभाषा देते हुए कहा कि, “विधिशास्त्र विध्यात्मक विधि का दर्शन है।” (Jurisprudence is the philosophy of positive law)
इसे सरल शब्दों में “वास्तविक विधि का दर्शन” भी कहा जाता हैं। ऑस्टिन की इस परिभाषा से तात्पर्य कई विधि व्यवस्थाओं में पाये जाने वाले सिद्धान्तों, मनोभावों तथा विभेदों से है। यहाँ शब्द ‘दर्शन’ का अर्थ विधि के सामान्य सिद्धान्तों से है।
ऑस्टिन की परिभाषा से चार बातें स्पष्ट होती हैं –
(i) विभिन्न विध्यात्मक प्रणालियों से एकत्रित या निस्सारित किये गये सिद्धान्त सामान्य विधिशास्त्र की विषय-वस्तु है।
(ii) विधिशास्त्र का विधि के गुण-दोषों से कोई तात्कालिक सरोकार या सम्बन्ध नहीं है।
(iii) विशिष्ट विधिशास्त्र किसी निश्चित विधिक प्रणाली अथवा उसके किसी अनुभाग का विज्ञान है और इस दृष्टि से केवल विधिशास्त्र ही व्यावहारिक है।
(iv) प्रौढ़ एवं विकसित विधिक प्रणालियों का अध्ययन सामान्य विधिशास्त्र के विज्ञान की विषय सामग्री है।
हॉलैण्ड की परिभाषा : हॉलैण्ड (Holland) ने ऑस्टिन की परिभाषा को कुछ परिष्कृत रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। हॉलैण्ड ने ऑस्टिन द्वारा प्रयुक्त शब्द ‘दर्शन’ के स्थान पर ‘प्रारूपिक विज्ञान’ (formal science) का प्रयोग करते हुए कहा है- “विधिशास्त्र विध्यात्मक विधि का प्रारूपिक विज्ञान है।”
इस परिभाषा से विधिशास्त्र के तीन तत्व स्पष्ट होते हैं –
(i) विध्यात्मक विधि (positive law),
(ii) विज्ञान (science) तथा
(iii) प्रारूपिक (formal)।
हॉलैण्ड के अनुसार, विधिशास्त्र विधि के प्रचलित नियमों, विचारों तथा सुधारों से सम्बन्धित शास्त्र है।
यहाँ विध्यात्मक (वास्तविक) विधि से अभिप्राय सामयिक सम्बन्धों को विनियमित करने वाली ऐसी विधियों से है जो राज्य द्वारा निर्मित होती है तथा न्यायालयों द्वारा लागू की जाती है। इस संदर्भ में यह सॉमण्ड की परिभाषा में प्रयुक्त शब्द ‘सिविल अर्थात् नागरिक विधि’ से मिलता-जुलता है।
यह ‘औपचारिक विज्ञान’ इसलिये है क्योंकि इस शास्त्र में उन नियमों का अध्ययन समाविष्ट नहीं है जो स्वयं पार्थिव सम्बन्धों से उत्पन्न हुए हैं, अपितु इसमें उन सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है जो विधिपूर्ण नियमों द्वारा क्रमबद्ध रूप से संचालित किये जाते हैं।
रॉस्को पाउण्ड की परिभाषा : रॉस्को पाउण्ड (Rosco Pound) ने विधिशास्त्र की समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से परिभाषा देते हुए कहा कि, “विधिशास्त्र विधि का विज्ञान है।” विधि के विज्ञान से तात्पर्य विधिक संस्थाओं एवं विधिक कल्पनाओं और विधिक व्यवस्था दोनों के सुव्यवस्थित और नियंत्रित ज्ञान के समूह से है।
इस परिभाषा के अनुसार, विधिशास्त्र के अन्तर्गत विधि के कार्य एवं साधन (task and means), दोनों अध्ययन अपेक्षित हैं। इसका उद्देश्य सामाजिक अभियंत्रण (Social engineering) कायम करना है जिसका अभिप्राय समाज में पाये जाने वाले परस्पर विरोधी हितों के बीच न्यूनतम प्रतिरोध के साथ अधिकतम आवश्यकताओं की पूर्ति कर सन्तुलन स्थापित करना है।
जुलियस स्टोन की परिभाषा : जुलियस स्टोन (Stone) के अनुसार “विधिशास्त्र विधिवेत्ता की बाह्यदर्शिता है।” आसान शब्दों में यह कहा जा सकता है कि “विधिशास्त्र वकीलों की बहिर्मुखी अभिव्यक्ति है।”
इससे अभिप्राय यह है कि वर्तमान ज्ञान के अन्य स्रोतों के आधार पर अधिवक्तागण विधि की अवधाराणाओं, आदर्शों एवं पद्धतियों का जो परीक्षण करते हैं, वही विधिशास्त्र की विषय-वस्तु (Subject-matter) है।
प्रो. स्टोन ने विधिशास्त्र की विषय-वस्तु को तीन वर्गों में वर्गीकृत किया है-
विश्लेषणात्मक विधिशास्त्र (Analytical Jurisprudence),
क्रियात्मक विधिशास्त्र (Functional Jurisprudence) तथा
न्याय के सिद्धान्त (Principles of Justice)
कीटन की परिभाषा : कीटन (Keeton) के अनुसार “विधि के सामान्य सिद्धान्तों का अध्ययन एवं उनकी क्रमबद्ध व्यवस्था विधिशास्त्र का विज्ञान है।” इस प्रकार कीटन विधिशास्त्र को विधि के सामान्य सिद्धान्तों का ज्ञान मानते हैं। उनके मत में विधिशास्त्र विधि के सामान्य सिद्धान्तों के विस्तृत अध्ययन तथा क्रमबद्ध व्यवस्था का मार्ग प्रशस्त करता है।
पैटन की परिभाषा : पैटन (Paton) ने विधिशास्त्र की अत्यन्त सरल परिभाषा दी है, उनके अनुसार- “विधिशास्त्र विधि से सम्बन्धित एक अध्ययन है” यानि “विधिशास्त्र विधि अथवा विधि के विभिन्न प्रकारों का अध्ययन है।”
इस प्रकार पैटन ने विधिशास्त्र के क्षेत्र को अत्यन्त व्यापक मानते हुए स्पष्ट किया है कि विधिशास्त्र विधिक प्रणालियों द्वारा विकसित अवधारणाओं और विधि द्वारा संरक्षित सामाजिक हितों का क्रियाशील अध्ययन है।
ग्रे की परिभाषा : ग्रे (Giay) के अनुसार “विधिशास्त्र न्यायालय द्वारा अनुसरण किये जाने वाले नियमों के अभिकथन एवं क्रमबद्ध व्यवस्था तथा उन नियमों में अन्तर्निहित सिद्धान्तों की विधि का विज्ञान है।”
इस प्रकार से ग्रे विधिशास्त्र को विधि का एक ऐसा विज्ञान मानते हैं जिसके अन्तर्गत न्यायालय द्वारा लागू किये जाने वाले क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित नियमों और उनमें सन्निहित सिद्धान्तों का अध्ययन किया जाता है।
ग्रे की परिभाषा से दो बातें स्पष्ट होती हैं – प्रथम यह कि विधिशास्त्र न्यायालय द्वारा अपनाये गये नियमों के वैज्ञानिक अभिकधन और क्रमबद्ध व्यवस्था से सम्बन्ध है तथा दूसरा यह कि न्यायालय द्वारा अपनाये गये नियमों में अन्तर्निहित सिद्धान्त विधिशास्त्र के अध्ययन की विषय-वस्तु है।
सिसरो की परिभाषा : रोम के विख्यात दार्शनिक सिसरो के अनुसार, “विधिशास्त्र विधि के ज्ञान का दार्शनिक पक्ष है।” इसके अन्तर्गत विधि के आदर्श तत्त्वों की खोज की जा सकती है तथा समादेशों की दार्शनिक व्याख्या की जा सकती है।
अल्पियन की परिभाषा : रोमन विधिशास्त्री अल्पियन के अनुसार, “विधिशास्त्र मानवीय एवं दैवी विषयों का ज्ञान तथा न्यायपूर्ण एवं अन्यायपूर्ण का विज्ञान है।”
केल्सन की परिभाषा : केल्सन के अनुसार “विधिशास्त्र एक मानवीय विज्ञान है।”
सेठना की परिभाषा : प्रो. एम.जे. सेठना के अनुसार “विधिशास्त्र सामाजिक ऐतिहासिक एवं दार्शनिक आधारों के साथ मूलभूत विधिक सिद्धान्तों का अध्ययन है तथा विधिक अवधारणाओं का विश्लेषण है।”
विधिशास्त्र की विषय-वस्तु
जैसा की हम जानते है कि, विधिशास्त्र विधि का अध्ययन है। इसकी विषय-वस्तु से जुड़ी अनेक अवधारणाएँ हैं। वस्तुतः विधिशास्त्र का उद्देश्य विधि की उत्पत्ति, विकास एवं कार्यों (functions) आदि का अध्ययन करना है और यही इसकी विषय-वस्तु है।
दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि, विधिशास्त्र के अन्तर्गत विधि के स्वरूप, उसके तत्त्वों, स्रोतों एवं उद्देश्यों आदि का अध्ययन किया जाता है। साथ ही इसमें विधिक अधिकार, कर्त्तव्य, स्वामित्व, आधिपत्य, विधिक व्यक्तित्व, सम्पत्ति, आपराधिक दायित्व आदि विधिक संकल्पनाओं का सूक्ष्म विश्लेषण किया जाता है।
संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि, विधिशास्त्र के अन्तर्गत उन सभी विधियों के मूलभूत सिद्धान्तों का अध्ययन समाविष्ट है जो समाज में न्याय की स्थापना के लिए लागू किये जाते हैं। वर्तमान समय में विधिशास्त्र के अध्ययन का दरवाजा बन्द नहीं है बल्कि यह तो हमेशा के लिए खुला है। यहाँ तक की देश, काल एवं परिस्थितियों के अनुसार इसके अध्ययन की विषय- वस्तु में अभिवृद्धि होती रहती है।
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